विशेष
लेख
- अशोक शर्मा
हास्यं
व्यंग्य, सामाजिक
सरोकार, विशिष्ट
शैली, माटी की सोंधी
महक, आध्यात्मिकता
का पुट और मानवता
का ज़ज्बा- इन्हीं
विशेषताओं का मुखरित
रूप बनी अल्हड़
बीकानेरी की कविताएं
- जो आज भी प्रासंगिक
हैं। मूल रूप से
हांस्य व्यंग्य
को अपनी कविता
का आधार बनाने
वाले बीकानेरी
ने समाज को कविताओं
की प्रयोगशाला
बनाया। समाज में
व्याप्त बुराईयों
ने उन्हें कचोटा,
उनकी कवि मन की
कोमल कल्पनाएं
जब यथार्थ की पथरीली
जमीन से टकराई
तो तीक्ष्ण व्यंग्य
सहज रूप से आया।
हर मुश्किल में
हौसला रखने का
संदेश देती उनकी
कविताएं जीने की
राह दिखाती है।
17 मई,
1937 को हरियाणा के
रेवाड़ी जिले के
बीकानेर गांव में
जन्मे प्रख्यात
हास्य कवि श्री
अल्हड़ बीकानेरी
की विशेषता थी
कि वे अपनी हर कविता
को छंद में लिखते
थे और कवि सम्मेलनों
के मंचों पर उसे
गाकर प्रस्तुत
करते थे। छंद, गीत,
गज़ल और पैराडियों
के रचयिता अल्हड़
जी अपने आप में
एक अनूठे कवि थे
और शिष्टता उनकी
विशिष्टता थी।
हास्य को गेय
बनाने की परम्परा
की शुरूआत करने
वाले श्री अल्हड़
बीकानेरी ही थे।
अल्हड़ जी को
हास्य कवि कहना
उनका सम्पूर्ण
मूल्यांकन नहीं
होगा। वह एक ऐसे
छंद शिल्पी थे,
जिन्हें छंद शास्त्र
का पूरा ज्ञान
था। यही नहीं गज़ल
लिखने वाले कवियों
और शायरों के लिए
उन्होंने गज़ल
का पिंगल शास्त्र
भी लिखा, जो उनकी
पुस्तक 'ठाठ गज़ल
के' में प्रकाशित
हुआ। अल्हड़
जी अपनी हास्य
कविताओं में सामाजिक
और राजनैतिक विसंगतियों
पर तीखा प्रहार
किया। अपनी बात
को कविता के माध्यम
से वे बहुत ही सहज
रूप से अभिव्यक्त
करते थे। श्री
अल्हड़ बीकानेरी
ने हास्य- व्यंग्य
कवितायें न सिर्फ
हिन्दी बल्कि
ऊर्दू, हरियाणावी
संस्कृत भाषाओं
में भी लिखीं और
ये रचनायें कवि-सम्मेलनों
में अत्यंत लोकप्रिय
हुईं। उनकी कविता
'दाता एक राम' हिन्दी
कवि सम्मेलनों
के इतिहास में
एक मील का पत्थर
सिद्ध हुई। इस
कविता के कुछ अंश
इस प्रकार हैं
:-
पाप-पुण्य
है कत्था-चूना परम पिता-पनवाड़ी पनवाड़ी
की इस दुकान को घेरे खड़े
अनाड़ी
काल
है सरौता, सुपारी
सारी दुनिया
दाता
एक राम, भिखारी
सारी दुनिया'
इस कविता की
उपरोक्त पंक्तियों
में अल्हड़ जी
ने काल को सरौता
बताया है ओर संसार
को एक सुपारी की
संज्ञा दी है।
भाव यह है कि जिस
प्रकार सरौता सुपारी
के छोटे-छोटे टुकड़े
करके उसके स्वरूप
को मिटा देता है,
उसी प्रकार समयरूपी
काल भी समय के साथ-साथ
धीरे-धीरे सब कुछ
मिटा देता है।
अल्हड़
जी का असली नाम
श्री श्याम लाल
शर्मा था। सन्
1954 में उन्होंने
हरियाणा की मैट्रिक
परीक्षा में 86 प्रतिशत
अंक प्राप्त करके
पूरे प्रदेश में
पहला स्थान प्राप्त
किया था। मैट्रिक
करने के पश्चात
उन्होंने इंजीनियरिंग
की पढ़ाई शुरू
की लेकिन ईश्वर
को तो कुछ और ही
मंजूर था और इंजीनियरिंग
के दूसरे वर्ष
की परीक्षा में
वे फेल हो गये।
इसी दौरान मैट्रिक
की परीक्षा में
सर्वश्रेष्ठ
प्रदर्शन की वजह
से उन्हें डाक
तार विभाग में
क्लर्क की नौकरी
मिल गई और दिल्ली
के कश्मीरी गेट
स्थित जी.पी.ओ. पोस्ट
आफिस में उन्होंने
डाक तार विभाग
में नौकरी शुरू
की। इसी दौरान
उनका सम्पर्क
दिल्ली के मशहूर
कव्वाल श्री नहीफ
देहलवी से हुआ
और उन्होंने
1962 से माहिर बीकानेरी
उपनाम से ऊर्दू
में गज़लें लिखनी
शुरू कीं। उनका
गज़लें लिखने का
सिलसिला 1967 तक चलता
रहा। उन्हीं दिनों
की बात है कि दिल्ली
के शक्ति नगर में
एक कवि सम्मेलन
था, जिसे सुनने
के लिए वे गये थे।
कवि सम्मेलन में
हास्य कवि काका
हाथरसी की फुलझडि़यां
सुनकर वे अत्यधिक
प्रभावित हुये
और उनके मन में
विचार आया कि क्यों
न गंभीर गीत, गज़लों
की बजाय हास्य
कविता के क्षेत्र
में हाथ आज़माये
जायें। यही वह
मोड़ आया था, जिसने
उन्हें माहिर
बीकानेर बना दिया
और उन्होंने हास्य
कवितायें लिखनी
शुरू की। यह अल्हड़ जी
की प्रतिभा और
लगन का ही करिश्मा
था कि सन् 1970 आते-आते
वे देश में एक लोकप्रिय
हास्य कवि के
रूप में प्रतिष्ठित
हो गये। काव्य
शुरू श्री गोपाल
प्रसाद व्याज
जी के मार्गदर्शन
में अल्हड़ जी
ने अनूठी हास्य
कवितायें लिख कर
उनकी अपेक्षाओं
पर अपने को खरा
साबित किया। अल्हड़
जी ने हिन्दी
हास्य कविता के
क्षेत्र में जो
विशिष्ट उपलब्धियां
प्राप्त कीं,
उनमें 'साप्ताहिक
हिंदुस्तान' के
सम्पादक श्री
मनोहर श्याम जोशी,
'धर्मयुग' के सम्पादक
श्री धर्मवीर भारती
और 'कादम्बिनी'
के संपादक श्री
राजेन्द्र अवस्थी
की विशेष भूमिका
रही। अल्हड़ जी
की कवितायें 'लोट
पोट', 'दीवाना तेज',
'साप्ताहिक हिंदुस्तान',
'कादम्बिनी', और
'धर्मयुग' जैसी
प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं
में नियमित रूप
से प्रकाशित हुईं।
उन्हीं दिनों
अल्हड़ जी की
कविता 'हर हाल में
खुश हैं' जब 'साप्ताहिक
हिंदुस्तान में
छपी तो यह कविता
पाठकों द्वारा
बहुत पसंद की गई।
समाज उनकी
कविताओं की प्रयोगशाला
रहा। नारी पर अत्याचार
को उन्होंने इस
तरह कहा- जुल्म
शौहर के क्यों
सहे तूने कोई बांदी तू
ज़रखरीद न थी
समाज
में व्याप्त
हिंसा ने उन्हें
भीतर तक झकझोरा
और उन्होंने कहा
-
लहू बहना
ही थासरहद पे बहता लहू सड़कों
पे क्यों बहने
लगा है।
अल्हड़
जी को 'ठिठोली पुरस्कार',
'काका हाथरसी पुरस्कार',
'टेपा समान', हरियाणा
गौरव समान' आदि
पुरस्कारों से
सम्मानित किया
गया। अनेकों पुरस्कार
तथा सम्मान प्राप्त
करने वाले अल्हड़
जी विनम्रता की
प्रतिमूर्ति थे
और वे बहुत ही सरल
स्वभाव के थे।
अल्हड़ जी की
प्रकाशित पुस्तकें
हैं- 'भज प्यारे
तू सीताराम', 'घाट-घाट
घमू', 'अभी हंसता
हूं', 'अब तो आंसू
पोंछ', 'भैंसा पीवे
सोमरस', 'ठाठ गज़ल
के', 'रेत पर जहाज़',
'अनझुए हाथ', 'खोल
न देना द्वार', 'जय
मैडम की बोल रे',
'बैस्ट ऑफ अल्हड़
बीकानेरी' और 'मन
मस्त हुआ'। अल्हड़
जी की हास्य-कव्वाली'
'मत पूछिये फुर्सत
की घडि़या हम कैसे
गुजारा करते हैं'
और हरियाणावी कविता
'अनपढ़ धन्नों'
ने कवि-सम्मेलनों
के मंचों पर लोकप्रियता
के नये कीर्तिमान
स्थापित किये।
अल्हड़
जी की एक और लोकप्रिय
कविता 'अभी हंसता
हूं' की एक बानगी
यहां प्रस्तुत
है :-
'खुद पे
हंसने की कोई राह
निकालूं तो हंसूं,अभी
हंसता हूं ज़रा
मूड में आ लूं तो
हंसूं।जन्म लेते
ही अभावों की जो
चक्की में पिसेजान
पाए न जो बचपन यहां
कहते हैं किसेजिनके
हाथों ने जवानी
में भी पत्थर
ही घिसेऔर पीड़ा
में जो नासूर की
मानिन्द रिसेउन
यतीमों को कलेजे
से लगा लूं तो हंसूं।अभी
हंसता हूं ज़रा
मूड में आ लूं तो
हंसूं।'
लगभग
50 वर्षों से अधिक
की काव्य यात्रा
में उनकी 12 पुस्तकें
प्रकाशित हुईं
और वे जीवन के अंतिम
समय तक काव्य
रचना में व्यस्त
रहे। चाहे जीवन
हो, कविता या कोई
भी अन्य क्षेत्र,
अल्हड़ जी अपनी
कविताओं को बेहतर
बनाने के लिए बहुत
मेहनत करते थे
और वे अपनी इसी
प्रवृति की वजह
से हिन्दी कविता
के क्षेत्र में
ऊंचाई के इस मुकाम
तक पहुंचे। उन्होंने
अपनी काव्य साधना
के बल पर जीवन के
आखिरी समय तक अपने
इस स्थान को अक्षुण्ण
बनाये रखा।
*लेखक स्वतंत्र
पत्रकार हैं।
वि.कासोटिया/जितेन्द्र-
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